क्या आपने ईश्वर को देखा
है?
[विश्व में अनेक धर्मं हैं और हर धर्म के
अनुनायियों के ईश्वर भी अलग-अलग हैं| जैसे- राम, कृष्ण, शिव, अल्लाह, यीशु, बुद्ध,
महावीर आदि| सभी धर्मों के अनुनायियों की अपने-अपने भगवान में विश्वास और श्रद्धा
है| लेकिन मेंने अनेक बार लोगों को यह प्रश्न करते देखा है, “क्या आपने ईश्वर को
देखा है?”
हम सभी यह मानते हैं कि ईश्वर तो सभी जगह है
लेकिन फिर भी हम देख नहीं पाते| क्यों?
ईश्वर हमारे पास अनेक बार किसी न किसी रूप में
आता है लेकिन हम उसे पहचान नहीं पाते|
मैं इस बात को स्पष्ट करने के लिए आपके समक्ष एक
घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ|]
दिल्ली की एक झुग्गी-झोंपड़ी कॉलोनी में एक गरीब परिवार
रहता था| एक वर्ष पूर्व इस परिवार में पांच सदस्य थे – एक युवक, उसकी पत्नी, दो
साल की एक पुत्री और उसके कमजोर व वृद्ध माता-पिता| पांच-छह महीने पूर्व युवक की
पत्नी का बीमारी से देहान्त हो गया| परिवार की आर्थिक स्थिति तो पहले से ही ख़राब थी|
बीमारी का कर्ज और मंहगाई ने तो परिवार का बुरा हाल कर दिया| इसी बीच युवक के बूढ़े
पिता की आँखों की रोशनी चली गई| वह पास के एक डॉक्टर के यहाँ आँखे दिखाने गया|
डॉक्टर ने चैक करके बताया कि आँखों में मोतियाबिंद है और ऑपरेशन करना होगा|
बुड्ढे ने डॉक्टर को बताया, “डॉक्टर साहेब! हम
बहुत ही गरीब हैं| हमारे पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं| एक बेटा है जो मजदूरी
करके किसी तरह परिवार का पेट पालता है| ऑपरेशन का तो खरचा भी बहुत होगा| उसके लिए
तो अस्पताल में भरती होना पड़ेगा! वहाँ मेरी देखभाल कौन करेगा? बुढ़िया को घर का काम
भी करना पड़ता है और मेरी नातिनी की देखभाल भी करनी पड़ती है| अगर मेरा बेटा मेरे
साथ अस्पताल में मेरी देखरेख के लिए रहेगा तो घर में तो चूल्हा भी नहीं जल पाएगा|”
“जीवन में बहुत-कुछ देखा है| बुढ़ापे में अब
आँखों का ऑपरेशन कराके क्या करूंगा! ऐसे ही दिन काट लूँगा|”
डॉक्टर ने उसे सलाह दी, “तुम एक काम करो| कालकाजी
मंदिर के पास आँखों का एक अस्पताल है – बनारसीदास चांदीवाला के नाम से| तुम अपनी
आँखें एक बार वहाँ दिखालो|”
दो-तीन दिनों के बाद, वह बूढ़ा व्यक्ति बनारसीदास चांदीवाला नेत्र चिकित्सालय गया|
डॉक्टर ने उसकी आँखें चैक करके पहले वाले डॉक्टर की राय ही दुहरा दी, “आँखों में मोतियाबिंद
है और ऑपरेशन करना होगा| कम से कम चार-पांच दिन अस्पताल में रुकना होगा और लगभग
आठ-नौ हजार का खर्च आएगा| एक आदमी तुम्हारी देखभाल के लिए भी चाहिए|”
बुड्ढे ने अपने मन में सोचा कि अब तो भगवान के
भरोसे ही जीना होगा| जो ईश्वर की इच्छा| वह अस्पताल से बाहर निकला और घर जाने के
लिए बस स्टैंड पर बैठ कर बस का इंतजार करने लगा| थोड़ी ही देर में एक व्यक्ति वहाँ
आया और उससे बोला, “बाबा क्या हुआ? क्यों परेशान हो?”
दुबारा पूछने पर बुड्ढे ने अपनी परेशानी उसको बता
दी| वह व्यक्ति बोला, “चलो उठो! मेरे साथ चलो!”
“कहाँ?” बुड्ढे ने पूछा|
वह बोला, “अस्पताल में, डॉक्टर के पास|”
बुड्ढा उसके साथ वापिस अस्पताल में गया और उस
व्यक्ति को डॉक्टर से मिलवाया| उसने डॉक्टर से कहा, “डॉक्टर साहब! आप इनकी आँखों
के ऑपरेशन के लिए डेट बता दो| मैं इनका इलाज कराऊंगा और देखभाल भी करूंगा|”
डॉक्टर ने अगले सप्ताह सोमवार को आने के लिए बोल
दिया| उस व्यक्ति ने बुड्ढे को कहा, “बाबा! सोमवार को सुबह यहाँ आजाना| मैं तुम्हें
यहीं मिलूंगा| अपने घर में बताकर मत आना कि ऑपरेशन कराने जा रहे हो| घरवाले बेकार
ही परेशान होंगे| किसी रिश्तेदारी में जाने का बहाना करके आजाना|”
बुड्ढे को विश्वास नहीं हुआ| पता नहीं सोमवार को
यह आदमी आएगा भी या नहीं| अगर घरवालों को बता दूँ और यह नहीं आया तो मजाक भी
बनेगा| उसने सोचा न बताने में ही भलाई है| उसने यह बात किसी को नहीं बतायी| सोमवार
के दिन बुड्ढा अस्पताल पहुंचा| वहाँ वह व्यक्ति पहले से ही उपस्थित था| बुड्ढे को
आश्चर्य हुआ कि आज भी ऐसे व्यक्ति हैं| उस व्यक्ति ने उस बुड्ढे की आँखों के
ऑपरेशन का बिल चुकाया| पांच दिनों तक उसकी देखभाल व सेवा की| अस्पताल से छुट्टी
होने पर दवाएं भी खरीद कर दीं| अंत में जब वह व्यक्ति जाने लगा तो बुड्ढे ने उससे
पूछा, “बाबूजी! आपका नाम क्या है?”
वह बोला, “नाम जानकर क्या करोगे?” और वह चला
गया|
बुड्ढा सीधा पहले वाले डॉक्टर के पास गया और
उसको सारी बात बताई|
डॉक्टर ने सारी बात ध्यान से सुनी और कुछ सोचकर
बोला, “बाबा! तुम पहचान नहीं पाये| वह तो साक्षात् ईश्वर था जो तुम्हारी सहायता के
लिए आया था|”
हमारे जीवन में भी ऐसा ही होता है| ईश्वर आता है
और हमारी सहायता करके चला जाता है लेकिन हम उसे पहचान नहीं पाते| हम सोचते है कि
जो कुछ हमने पाया है, यह तो हमारी ही मेहनत का फल है| जब कोई मुसीबत आती है तो
सोचते है कि ईश्वर हमें क्यों तंग कर रहा है?
यह कैसी विडम्बना है?
[मैं आशा करता हूँ की यह कहानी आपकी सोच व आपके जीवन
में एक सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होगी| आपकी प्रतिक्रिया व सुझाव मुझे
सही राह दिखाने में सहायक सिद्ध होंगे| धन्यवाद|]