Friday 27 February 2015

क्या आपने ईश्वर को देखा है?

क्या आपने ईश्वर को देखा है?
[विश्व में अनेक धर्मं हैं और हर धर्म के अनुनायियों के ईश्वर भी अलग-अलग हैं| जैसे- राम, कृष्ण, शिव, अल्लाह, यीशु, बुद्ध, महावीर आदि| सभी धर्मों के अनुनायियों की अपने-अपने भगवान में विश्वास और श्रद्धा है| लेकिन मेंने अनेक बार लोगों को यह प्रश्न करते देखा है, “क्या आपने ईश्वर को देखा है?”
हम सभी यह मानते हैं कि ईश्वर तो सभी जगह है लेकिन फिर भी हम देख नहीं पाते| क्यों?
ईश्वर हमारे पास अनेक बार किसी न किसी रूप में आता है लेकिन हम उसे पहचान नहीं पाते|
मैं इस बात को स्पष्ट करने के लिए आपके समक्ष एक घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ|]
दिल्ली की एक झुग्गी-झोंपड़ी कॉलोनी में एक गरीब परिवार रहता था| एक वर्ष पूर्व इस परिवार में पांच सदस्य थे – एक युवक, उसकी पत्नी, दो साल की एक पुत्री और उसके कमजोर व वृद्ध माता-पिता| पांच-छह महीने पूर्व युवक की पत्नी का बीमारी से देहान्त हो गया| परिवार की आर्थिक स्थिति तो पहले से ही ख़राब थी| बीमारी का कर्ज और मंहगाई ने तो परिवार का बुरा हाल कर दिया| इसी बीच युवक के बूढ़े पिता की आँखों की रोशनी चली गई| वह पास के एक डॉक्टर के यहाँ आँखे दिखाने गया| डॉक्टर ने चैक करके बताया कि आँखों में मोतियाबिंद है और ऑपरेशन करना होगा|
बुड्ढे ने डॉक्टर को बताया, “डॉक्टर साहेब! हम बहुत ही गरीब हैं| हमारे पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं| एक बेटा है जो मजदूरी करके किसी तरह परिवार का पेट पालता है| ऑपरेशन का तो खरचा भी बहुत होगा| उसके लिए तो अस्पताल में भरती होना पड़ेगा! वहाँ मेरी देखभाल कौन करेगा? बुढ़िया को घर का काम भी करना पड़ता है और मेरी नातिनी की देखभाल भी करनी पड़ती है| अगर मेरा बेटा मेरे साथ अस्पताल में मेरी देखरेख के लिए रहेगा तो घर में तो चूल्हा भी नहीं जल पाएगा|”
“जीवन में बहुत-कुछ देखा है| बुढ़ापे में अब आँखों का ऑपरेशन कराके क्या करूंगा! ऐसे ही दिन काट लूँगा|”
डॉक्टर ने उसे सलाह दी, “तुम एक काम करो| कालकाजी मंदिर के पास आँखों का एक अस्पताल है – बनारसीदास चांदीवाला के नाम से| तुम अपनी आँखें एक बार वहाँ दिखालो|”
दो-तीन दिनों के बाद, वह बूढ़ा व्यक्ति  बनारसीदास चांदीवाला नेत्र चिकित्सालय गया| डॉक्टर ने उसकी आँखें चैक करके पहले वाले डॉक्टर की राय ही दुहरा दी, “आँखों में मोतियाबिंद है और ऑपरेशन करना होगा| कम से कम चार-पांच दिन अस्पताल में रुकना होगा और लगभग आठ-नौ हजार का खर्च आएगा| एक आदमी तुम्हारी देखभाल के लिए भी चाहिए|”
बुड्ढे ने अपने मन में सोचा कि अब तो भगवान के भरोसे ही जीना होगा| जो ईश्वर की इच्छा| वह अस्पताल से बाहर निकला और घर जाने के लिए बस स्टैंड पर बैठ कर बस का इंतजार करने लगा| थोड़ी ही देर में एक व्यक्ति वहाँ आया और उससे बोला, “बाबा क्या हुआ? क्यों परेशान हो?”
दुबारा पूछने पर बुड्ढे ने अपनी परेशानी उसको बता दी| वह व्यक्ति बोला, “चलो उठो! मेरे साथ चलो!”
“कहाँ?” बुड्ढे ने पूछा|
वह बोला, “अस्पताल में, डॉक्टर के पास|”
बुड्ढा उसके साथ वापिस अस्पताल में गया और उस व्यक्ति को डॉक्टर से मिलवाया| उसने डॉक्टर से कहा, “डॉक्टर साहब! आप इनकी आँखों के ऑपरेशन के लिए डेट बता दो| मैं इनका इलाज कराऊंगा और देखभाल भी करूंगा|”
डॉक्टर ने अगले सप्ताह सोमवार को आने के लिए बोल दिया| उस व्यक्ति ने बुड्ढे को कहा, “बाबा! सोमवार को सुबह यहाँ आजाना| मैं तुम्हें यहीं मिलूंगा| अपने घर में बताकर मत आना कि ऑपरेशन कराने जा रहे हो| घरवाले बेकार ही परेशान होंगे| किसी रिश्तेदारी में जाने का बहाना करके आजाना|”
बुड्ढे को विश्वास नहीं हुआ| पता नहीं सोमवार को यह आदमी आएगा भी या नहीं| अगर घरवालों को बता दूँ और यह नहीं आया तो मजाक भी बनेगा| उसने सोचा न बताने में ही भलाई है| उसने यह बात किसी को नहीं बतायी| सोमवार के दिन बुड्ढा अस्पताल पहुंचा| वहाँ वह व्यक्ति पहले से ही उपस्थित था| बुड्ढे को आश्चर्य हुआ कि आज भी ऐसे व्यक्ति हैं| उस व्यक्ति ने उस बुड्ढे की आँखों के ऑपरेशन का बिल चुकाया| पांच दिनों तक उसकी देखभाल व सेवा की| अस्पताल से छुट्टी होने पर दवाएं भी खरीद कर दीं| अंत में जब वह व्यक्ति जाने लगा तो बुड्ढे ने उससे पूछा, “बाबूजी! आपका नाम क्या है?”
वह बोला, “नाम जानकर क्या करोगे?” और वह चला गया|
बुड्ढा सीधा पहले वाले डॉक्टर के पास गया और उसको सारी बात बताई|
डॉक्टर ने सारी बात ध्यान से सुनी और कुछ सोचकर बोला, “बाबा! तुम पहचान नहीं पाये| वह तो साक्षात् ईश्वर था जो तुम्हारी सहायता के लिए आया था|”
हमारे जीवन में भी ऐसा ही होता है| ईश्वर आता है और हमारी सहायता करके चला जाता है लेकिन हम उसे पहचान नहीं पाते| हम सोचते है कि जो कुछ हमने पाया है, यह तो हमारी ही मेहनत का फल है| जब कोई मुसीबत आती है तो सोचते है कि ईश्वर हमें क्यों तंग कर रहा है?
यह कैसी विडम्बना है?

[मैं आशा करता हूँ की यह कहानी आपकी सोच व आपके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होगी| आपकी प्रतिक्रिया व सुझाव मुझे सही राह दिखाने में सहायक सिद्ध होंगे| धन्यवाद|]

Thursday 19 February 2015

लघु कथा - पाप क्या है?

लघु कथा - पाप  क्या है?
पुण्य क्या है और पाप क्या है? मैं तो इसे परिभाषित के योग्य नहीं हूँ |
कल की बात है | प्रात: भ्रमण के बाद पार्क में एक बैंच पर बैठा था | कुछ लोग और भी थे | अचानक ही पाप और पुण्य का प्रसंग चल पड़ा | ह्मारे साथ एक बुजुर्ग भी बैठे थे| उन्होंने जो कहानी सुनायी थी, वह आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ |
एक राजा था, उसकी कई रानियाँ थी, पुत्र थे और सुखी प्रजा थी | सब कुछ अच्छा चल रहा था | अचानक राजा के मान में यह जानने की इच्छा हुई कि पाप क्या है? राजा ने अपने दरबारियों के सामने अपना प्रश्न रखा लेकिन उसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला | राजा को कोई भी विद्वान मिलता तो उससे यह जानने का प्रयास करता कि पाप क्या है? एक बार राजा जंगल में शिकार पर गया | वहाँ उसे एक संत मिले और राजा ने उनसे भी अपने प्रश्न का उत्तर जानना चाहा | उन्होने राजा से कहा,"पास में ही रूपवती का आश्रम है | राजन् आप वहाँ चले जाओ | आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा|"
राजा रूपवती के आश्रम पहुँच गया| रूपवती बहुत ही सुंदर, गुणवान और विदुषी महिला थी|
राजा ने रूपवती के समक्षा अपना प्रश्न दुहराया,
"मैं यह जानना चाहता हूँ कि पाप क्या है?"
रूपवती ने कहा,"राजन्! आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा लेकिन उसके लिए आपको 15-20 दिन आश्रम में रहना होगा|"
राजा ने कहा,"यह तो संभव नहीं है| मेरी रानियाँ हैं, पुत्र हैं, राज्य है| मैं इतने दिनों तक अपना सब कुछ छोड़कर आपके आश्रम में नहीं रुक सकता|"
रूपवती ने कहा,"राजन्! फिर तोआपको अपने प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाएगा|"
राजा ने अपने मान में विचार किया कि क्या पता मुझे अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाए| चलो कुछ दिन रुक ही जाता हूँ| राजा ने रूपवती से कहा,"ठीक है| मैं कुछ दिन रुक जाता हूँ|"
राजा आश्रम में ठहर गया| रूपवती राजा के लिए स्वादिष्ट व्यंजन बनाती| प्यार से खिलती| राजा की सेवा करती| दस-बारह दिन बीत गये| राजा को रूपवती से प्यार हो गया| राजा ने एक दिन रूपवती से कहा,
"मैं आपसे प्यार करता हूँ और शादी करना चाहता हूँ!"
रूपवती ने उत्तर दिया,"राजन्! जब आप मेरे आश्रम में आए थे तो आपको अपनी रानियों, पुत्रों और प्रजा की बहुत चिंता थी| यहाँ तक कि आप यहाँ रुकना भी नहीं चाहते थे| और अब आप सब कुछ भूल कर मुझसे शादी करना चाहते हो|"
"राजन्! यही पाप है| अपने कर्तव्य से विमुख होना ही पाप है| केवल चोरी करना, हिंसा करना, अत्याचार करना ही पाप नहीं है|"
राजा को अपनी ग़लती का आभाष हुआ| राजा ने रूपवती से क्षमा माँगी और अपने राज्य को चला गया|
अनेक बार हम कहते हैं कि हमने तो कोई पाप नहीं किया! पता नहीं भगवान कोनसे पाप की सज़ा हमें दे रहा है|
यह लघु कथा हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने कर्तव्य का सही प्रकार से पालन कर रहे हैं!
ह्म अवश्य सोचें कि एक इंसान, पुत्र, पति, पिता, नागरिक, कर्मचारी, व्यवसायी आदि, हम जो भी हैं उसके रूप में क्या अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं?
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धन्यवाद|